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bhagat singh biography in hindi

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bhagat singh biography in hindi

14 साल की उम्र से ही भगत सिंह क्रांतिकारी संस्थाओं के साथ जुड़ गए थे

भगत सिंह ने घर से बंदूक उठाकर अपने खेत में ले जाकर क्यों गाड़ दी और क्यों जलियांवाला बाग से मिट्टी उठाकर घर आ गए भगत सिंह और किसे माना

महान revolutionary Bhagat Singh ने बंदूक और बारूद से भी ज्यादा क्रांति का सशक्त हथियार ! क्यों लाला लाजपत राय के साथ कई सैद्धान्तिक मतभेदों के बावजूद प्रण लिया Bhagat Singh ने उनकी मौत का बदला लेने का !


भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के जिला लायलपुर में बंदा गांव में हुआ था Bhagat Singh और उनके पिता सरदार किशन सिंह और उनके चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह सभी revolutionary स्वभाव के थे अंग्रेजो के खिलाफ लगातार आवाज उठाते थे


 जिस दिन भगत सिंह का जन्म हुआ उस दिन उनके पिता और चाचा जेल में थे जब उनके जन्मकी सूचना जेल  अधिकारियों को दी गई उनके पिता और चाचा को रिहा किया गया बच्चे का नाम रखा भागा बाबा मतलब अच्छे भाग्य वाला बच्चा ! बाद में उनका नाम भगतसिंह कर दिया गया !


जब उनकी शादी की बातें घरवालों ने शुरू की और विवाह के बंधन में बांधने की योजनाएं बनने लगी तो भगत सिंह लाहौर से भागकर कानपुर जा पहुंचे छोड़ गए अपने तकिए के नीचे चिट्टी जिसमें उन्होंने अपने घर वालों को लिखा था मेरी पत्नी आजादी है और भारत को आजाद कराना ही मेरा जीवन का लक्ष्य है


और अपने चाचा अजीत सिंह के साथ आजादी के आंदोलन में कूद पड़े उनके चाचा करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पार्टी के सदस्यों का उनपर गहरा प्रभाव था और वही उनके शुरुआती गुरु थे आगे आप को बताऊंगा कि

 किस तरह से Bhagat Singh ने दुनिया के तमाम बड़े चिंतक विचारक महान क्रांतियों के जीवन का और उनके लेखन का गहन अध्ययन किया और फिर स्थापित की हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी हम अमर शहीद भगत सिंह की बात कर रहे हैं


1919 में गांधीजी के आव्हान पर देश में असहयोग आंदोलन शुरू हो चुका था उस समय लोगो में बहुत जबरदस्त उर्जा थी  बहुत जज्बा था और गांधीजी की कॉल पर जैसे पूरा देश उनके पीछे खड़ा हो गया था लेकिन उसी समय चौरी चौरा की घटना हुई जिसमें


आंदोलनकारियों ने पुलिस थाने पर हमला कर दिया कई पुलिसकर्मी मारे गए गांधीजी इस हिंसा से बहुत निराश हुए और उन्होंने जो ऑपरेशन छेड़ा था उसको वापस लेने की कॉल दे दी बड़ी संख्या में नवयुवक इस आंदोलन में कूदा था जब उनका अंग्रेजों को देश से खदेड़ने का सपना टूटा तो वे  बहुत निराश हो गए उनका मन टूट गया

इसी दौर में सचिन सान्याल जैसे revolutionary स्वभाव के लोग सामने आए इस गुट ने गांधीजी के नॉन वायलेंस के अहिंसा की कॉल से हटकर बारूद बंदूक और बम के पर  देश को आजाद कराने की ठान ली और हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी को ज्वाइन कर लिया


लेकिन Bhagat Singh जैसे  कुछ अलग ही मिट्टी के बने हुए थे हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी जॉइन कर ली लेकिन वहां पर उन्होंने एक बड़े पुस्तकालय एक बड़ी लाइब्रेरी का भी गठन किया  छोटी सी उम्र में ही भगतसिंह ने तमाम बड़े विचार को चिंतकों और क्रांतिकारियों के जीवन को अध्ययन किया


उनका कहना था बंदूख उठाओगे बम्ब फेकोगे तो लेकिन ये जानो  बंदूक क्यों उठा रहे हो और क्यो उठा रहे हो और बम किस पर क्यों फेक  रहे हो मतलब यह कि भगत सिंह revolutionary और एक गहनचिन्तक भी थे


 1925 में Bhagat Singh सुखदेव और विजय कुमार सिन्हा ने सान्याल साहब और उनके साथियों द्वारा गठित हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी रखा अनूठी और निराली सक्सियत थी  भगत सिंह की जो हथियारों की क्रांति से पहले विचारों की क्रांति लाना चाहते थे
 

 क्यों भगत सिंह ने एक दिन अपने घर से उठाई बंदूक और भागते भागते पहुंचे अपने खेत और फिर एक गड्ढा खोद गांड दी उसमें वह बंदूक किस्सा तब का है जब Bhagat Singh की उम्र 5 साल की थी भगत सिंह के हाथ खेलते खेलते एक दिन अपने चाचा की बंदूक लग गई


 उन्होंने अपने चाचा से पूछा  कि भाई यह क्या है इससे क्या होता है चाचा ने कहा कि इससे अंग्रेज हुकूमत को देश से भगा देंगे कुछ दिनों बाद Bhagat Singh अपने चाचा के साथ जब खेत में काम कर रहे थे तो उन्होंने देखा चाचा वहां एक आम का पेड़ लगा रहे थे तो


 भगत सिह ने पूूछा लगा आप क्या कर रहे हैं तो उनके चाचा ने कहा मैं आम का पेड़ लगा रहा हूँ1 दिन में खूब लगे भगत सिंह ने बात सुनी और दौड़ते हुए घर पहुंचे घर से उठाई बंदूक चाचा की और वापस जोड़ पहुंचाएं और गड्ढा खोदना शुरू कर दिया खोजने के बाद उसमें बंदूक देखो मिट्टी से परेशान दिख रहा है परेशान देख रही बच्चा क्या कर रहा है 


अब बालक Bhagat Singh का जवाब सुने भगत सिंह ने कहा चाचा में बंदूक की फसल उगा रहा हूं 1 दिन ऐसा आएगा जब कई बंदूके के पैदा होंगी और हम सब मिलकर इस देश को अंग्रेजों से आजाद करा देंगे 5 साल की उम्र में जो बच्चा इतना क्रन्तिकारी था

उसने 23 साल की उम्र तक उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया अंग्रेज हुकूमत को लोहे के चने चबा दिए और देश के नौजवानों के लिए सबके लिए एक अमर मिसाल आज तक बने हुए हैं बचपन में बंदूक की खेती का सपना देखने वाला


Bhagat Singh जैसे जैसे बड़ा हुआ उसकी इंटेलेक्चुअलिटी सोचने समझने वाला दिमाग भी उतना ही डिवेलप होता गया इसलिए जब हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी बनीतो उसने उस लाइब्रेरी की स्थापना कैसे बड़े होते गए उनका विचार यह भी था कि क्रांति सिर्फ हथियारों से नहीं आ पाएगी  वह कहते थे कि


आर्म रिवॉल्यूशन या किसी भी हथियारबंद क्रांति की नींव विचारोंं पर रखी जाएगी  इसलिए ही उनकी लाइब्रेरी में ट्रांसफॉरमेशन पर कम्युनिज्म पर सोशलिज्म पर दुनिया की बड़ी क्रांतियों पर एक से एक पुस्तके थी 

आखिर क्यों जलियांवाला बाग की मिट्टी उठाकर ले आए अपने घर Bhagat Singh


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आखिर क्यों जलियांवाला बाग की मिट्टी उठाकर ले आए अपने घर Bhagat Singh क्या सौगंध सिर्फ 12 साल के थे भगतसिंह जब जलियांवाला हत्याकांड हुआ जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था जलियांवाला कांड के अगले ही दिन

स्कूल से भागकर 12 कोस पैदल चल लाहौर से अमृतसर पहुंच गए भगत सिंह और पहुंच गए जलियांवाला बाग की मिट्टी को एक बोतल में रखी और वापस घर की ओर लौट के आए पूरा दिन निकल गया देर रात जब अपने घर लौटे किसी से कुछ नहीं बोले


 चुपचाप अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगे कमरे की तरफ जा रहे थे तो उनकी मर्जी कहां थे आप अमर घोर न्यूज़ को रोका और कहा वीर जी आज आने में बहुत देर कर दी कहां थे आप मैं कब से आपका इंतजार कर रही थी भगत सिंह कुछ नहीं बोले अमर कौर ने फिर कहा आप दुखी क्यों लग रहे हैं


सच-सच बताइए क्या बात है Bhagat Singh ने कहा मैं तुम्हें कुछ नहीं बता सकता मैं फिर बहुत ही प्यार जताते हुए बताओ ना तब भगत सिंह ने जेब से वो शीशी नीकाली और उनकी बहन  के कुछ समझ में नहीं आया चौक कर बोली अरे इसमें स्याही की जगह यह क्या है जो लाल रंग दिख रहा है क्या है


यह Bhagat Singh ने कहा यह मिट्टी है खून से सनी लाल मिट्टी अमृतसर के जलियांवाला बाग में अंग्रेजों ने गोलियां चला कर अनेक निहत्थे लोगों को मार डाला उन शहीदों के खून से सनी मिट्टी जो लाल हो गई है वही मिट्टी मैं लेकर आया हूं घर और कहा


 बस अब बहुत हो गया अब हम भी नहीं खाएंगे नही गोली मरेगे मुझे  इस मिट्टी की  सौगंध में इन लोगों की मौत का बदला जरूर लूंगा सिर्फ 12 साल की उम्र में यह प्रण लिया था ये वो वाकया था जो भगत सिंह की पर्सनालिटी उनके सोच को उनकी शख्सियत को स्थापित करती है !


लाला लाजपत राय के साथ राजनीतिक और सैद्धांतिक मतभेद होने के बावजूद जब लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने का प्रण ले लिया भारत में कांग्रेस के अंग्रेज विरोधी आंदोलन को शांत करने के लिए अंग्रेज हुकूमत ने 1927 में साइमन आयोग का गठन किया 


उसे भारत भेजा देश में जगह जगह प्रदर्शन हुए लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में जो  प्रदर्शन हो रहा था उसका नेतृत्व कर रहे थे पंजाब के लाल और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता लाला लाजपत राय प्रदर्शनकारियों पर लाठी बरसाने का आदेश अंग्रेज पुलिसे अधिकारी जेम्स ज स्कॉट ने दिया था


लाला लाजपत राय उन लाठियों से घायल हुए और उनको  अस्पताल में भर्ती किया गया लेकिन लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई मरने से पहले लाला साहब ने कहा था कि मेरे ऊपर जो लाठियों के प्रहार किए गए हैं वही 1 दिन ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत की आखिरी कील साबित होंगे


भगत सिंह और उनके साथियों ने कर दिखाया 17 दिसंबर 1928 Bhagat Singh राजगुरु और कुछ अन्य revolutionary साथियों के साथ मिलकर जी एमस्कॉट को मारने की योजना को अंजाम दिया उनसे गलती बस ये हो  गई कि एमस्कॉट की जगह उन्होंने डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स को मार दिया 


अगले दिन यानी 18 दिसंबर 1928 को क्रांतिकारियों ने लाल स्याही से लिखे गए एक इश्तिहार को को शहर की दीवारों पर चिपका दिया पोस्टर पर लिखा था  हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सेना नोटिस  नौकरशाही सावधान सांडर्स की  मौत से लाला लाजपत राय की हत्या का बदला ले लिया गया है


सांडर्स की हत्या के साथ ही अंग्रेज हुकूमत बौखला उठी थी घर पकड़ शुरू हो गई पुलिस छानबीन जबरदस्त हो रही थी सबसे ज्यादा तलाश थी उनको भगत सिंह की  इतने जबरदस्त खतरे को आखिर क्यों उठाया जबकि लाला लाजपत राय के साथ उनके सिद्धांतिक मत्भाद थे 


जब Bhagat Singh से पूछा गया कि आप तो लाला जी के विचारों से नहीं सहमत थे फिर भी आपने अपनी जान को खतरे में डालकर उनकी हत्या का बदला क्यों लिया तो भगतसिंह ने बड़े गुस्से में जवाब दिया जवान बेटों की मौजूदगी बूढ़े  बाप पर दुश्मन हमला करें और तब भी बेटे चुप बैठ रहे हमारे विरोध लाख थे लेकिन वो हमारे लिए तो हमारे बाप बराबर थे ये था जज्बा  Bhagat Singh और उनके revolutionary साथियों का 


9 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर काकोरी नाम के एक छोटे से स्टेशन के पास लूट ली गयी  उसमें सरकारी खजाना था इस घटना को अंजाम देने वाले इस की योजना बनाने वाले लोगों में प्रमुख थे  राम प्रसाद बिस्मिल चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह और


कुछ अन्य revolutionary काकोरी काण्ड से जुड़े ज्यादातर क्रन्तिकारी लखनऊ जेल में कद थे केश चल रहा था  इसी दौरान बसंत पंचमी का त्यौहार आ गया सभी क्रांतिकारियों ने मिलकर तय किया कि बसंत पंचमी के दिन वह सब सर पर पीली टोपी लगाकर हाथ में पीला रुमाल लेकर कोर्ट जाएंगे


उन्होंने अपने नेता और जबरदस्त revolutionary रामप्रसाद बिस्मिल से अनुरोध किया कि पंडित जी कल के शुभ पावन मौके परकोई भड़कती हुई  कविता लिखिए जो हम  सब मिलकर गेट हुए जायेंगे अगले घी दिन कविता तय्यार थी मेरा रंग दे बसंती चोला 


 हो मेरा रंग दे बसंती चोला वीर रस में डूबी इस कविता की इन पंक्तियों को जब Bhagat Singhने सुना जो  उन दिनों लाहौर जेल में बंद थे तो उन्होंने अपनी तरफ से भी इस कविता में पंक्तियां जोड़ी ये वो  शहादत की कविता है जो भारत के हर revolutionary के लिए जैसे आजादी का मंत्र बन गई जीवन की प्रेरणा बन गयी


भगत  सिंह के जीवन सेजुडी  हुए ऐसी बातें जो हमने बहुत कम सुनी है और जिनके बारे में ज्यादा लिखा गया नहीं है जैसे भगत सिंह की क्या राय फिल्मों और कुछ फ़िल्मी कलाकारों के बारे मैं  वो अपने दोस्त राजगुरु और यशपाल के साथ जब भी मौका मिलता था फिल्म देखने जाते थे उनका फिल्मी दुनिया में पसंदीदा किरदार चार्लिचाप्लिन हुआ करता था


चंद्रशेखर  आजाद साहब बहुत गुस्सा होते थे 
अपने क्रांतिकारी दोस्तों की इस फिल्म देखने की आदत से और वो चार्लिचाप्लिन को  4 फुट का अमरीकी नौटंकीबाज कहते थे Bhagat Singh और उनके साथियों को चार्ली चैपलिन इसलिए बेहद पसंद था


 क्योंकि वह उससमय का दौर एक ख़ास तरह का तानाशाही कादौर था और लोग खौफजदा रहते थे उस दौर में एक कलाकर जो सबका दर भागता था  उनके चेहरे पर मुस्कुराहट औरअपने  खूबसूरत कम से लोगों को एक  कल्पना की दुनिया में ले जाता था


क्या  आपको ये  बात मालूम है कि भगतसिंह बहुत अच्छे एक्टर हुआ करते थे और कॉलेज के दिनों में न सिर्फ उन्होंने ड्रामा सोसाइटी स्थापित की बल्कि कई नाटकों में नायक का रोल भी निभाया उन्होंने महाराणा प्रताप में महराना प्रताप की भूमिका निभाई


भागात सिंह काफ़ी अच्छे लेखक भी थे पंजाबी और उर्दू अख़बारों में उन्होंने खूब लिखा लेकिन लिखा अपने नाम का प्रयोग नही किया उस समय अंग्रेजो  के जुल्म के खिलाफ एक उबाल का माहौल था उसने इस कलाकार को तब्दील कर दिया एक revolutionary में


 लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने सर पर कफन बांध लिया और 1 दिन मौका निकाल कर  बदला ले भी  लिया ये अलग बात है की जेम्स  एस्कॉर्ट की बजाय उन्होंने असिस्टेंट ऑफ पुलिस सांडर्स की हत्या कर दी हत्या के बाद शुरू हुआ अंग्रेजों द्वारा क्रांतिकारियों के दमन का भीषण दौर


जब अंग्रेज पुलिस ऑफिसर सांडर्स की हत्या कर दी Bhagat Singh और उनके साथियों ने तो कैसे बचकर निकले भगत सिंह अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ अंग्रेजों की नजर से बहुत दिलचस्प वाकया है जब लाला लाजपत राय अंग्रेज पुलिस की लाठियों की चोट से स्वर्गवासी हो शहीद हुए तो जैसे


 Bhagat Singh ने अपने सर पर कफन बांध लिया इस हत्या का बदला जरूर लेंगे 17 दिसंबर 1928 को सरेआम सांडर्स की हत्या से पुरे देश में हरकंप सा मच गया Bhagat Singh और सुखदेव अंग्रेज की नज़र से बचते बचते पहुँच गये दुर्गा भाभी के यहाँ जो पिछले कुछ सालों से भारतीय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम  से जुड़ी हुई थी और भारतीय नौजवान सभा की सक्रिय सदस्य थी

अब यहाँ से योजना बननी शुरू हुयी के  लाहौर से अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंक कर भागा  कैसे जाए


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अब यहाँ से योजना बननी शुरू हुयी के  लाहौर से अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंक कर भगा  कैसे जाए  सारी योजना दुर्गा भाभी ने बनाई और कहा कि कलकता  चलते हैं दुर्गा भाभी के प्रति प्रोफेसर भगवती चरण वोहरा भी कोलकाता में रहते थे तो


योजना यह बनी कि भगत सिंह तो बनेंगे दुर्गा भाभी के पती  तो Bhagat Singh ने बिल्कुल अंग्रेज अंदाज में सूट बूट बनवाया दाढ़ी मूछ मुंडवाई टोपी लगाए और दुर्गा भाभी के साथ तांगे में बैठकर रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ चले सुखदेव जी बने उनके नौकर  स्टेशन तो पहुंच गए लेकिन वहां भी पुलिस का बंदोबस्त बड़ा जबरदस्त था 


अब सूटेड बूटेड  भगत सिंह उनकी पत्नी बनी हुई दुर्गा भाभी और नौकर बना हुआ सुखदेव रेलवे प्लेटफार्म पर आए सुखदेव के पास तो सेकंड क्लास स्लीपर का टिकट था और Bhagat Singh दुर्गा भाभी के पास क्लास के टिकेट थे और सुखदेव के पास सेकंड क्लास का और दुर्गा भाभी के पास उनका 2 साल का बेटा शचीन्द्र


सुनने में तो यह योजना आपको बड़ी आसान लग रही होगी कि बस भेष  बदल लिया और रेल पकड़ कर भाग गए लेकिन साहब जिस तरह से अंग्रेज पुलिस जिस डिटरमिनेशन के साथ इन क्रांतिकारियों को ढूंढ रही थी उस समय अंग्रेजों की आंखों में इस तरह से धूल झोंक कर भाग निकलना


 अपने आप में एक बहुत बड़ी बात थी इसलिए आज तक उसको भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में एक रेड लेटर डे एक स्वर्णिम दिन के रूप में  देखा जाता है

Bhagat Singh और सुखदेव लाहौर से भागकर कोलकाता तो पहुंच गए और एक बार तो अंग्रेजों को चकमा दे दिया लेकिन आगे उनका इंतजार कर रही थी बड़ी  योजना
 सांडर्स  की हत्या करने के बाद लाहौर से ट्रेन में बैठ कोलकाता पहुंच गए


भगत सिंह और राजगुरु लेकिन उसके बाद दिल्ली असेंबली पर उन्होंने बम फेंकने की योजना क्यों और कैसे बनाई और क्यों इस घटना को अंजाम देने के बाद भगत सिंह और राजगुरु अपनी मर्जी से गिरफ्तार हो गए


Bhagat Singh जितने बड़े revolutionary थे बंदूक बारूद और बम के प्रेमी पुजारी थे उससे भी ज्यादा वह शायद चिंतक और विचारक थे  पुस्तक प्रेमि थे
  
बहुत गहन अध्ययन उन्होंने दुनियाभर की क्रांतियों का किया था उनकी पसंदीदा पुस्तक थी द्रेंबिन द्वारा लिखी गयी माय फाइट फॉर आयरिश फ्रीडम आयरिश क्रांति पर दरिन्द बिन के ये आत्म कथा भगत सिंग एक बार ये किताब पढ़ रहे थे तो एक प्रसंग आया


की अगर आयरिश क्रन्तिकारी वहा नियुक्त गवर्नर जनरल की गाड़ी के नीचे बम्ब रख देंगे और जनरल मरे जाते है और क्रन्तिकारी अगर जाकर पास के गाँव में छुप जायेंगे तो इलाके का बचा बचा कट जायेगा लेकिन उनका पता नही बतायेगा पुलिस को ये सुनकर Bhagat Singh के साथियों का मुह कुछ लटक गया


और  उनके साथी जयदेव ने कहा कि आयरलैंड की जनता ऐसी है इतनी देशभक्त हमारे यहां तो गैरों को छोड़ो हमारे अपने ही पुलिस को बताकर हमारा भेद खोल देंगे इस पर भगत सिंह का कहना था 


मैं अपनी मौत को इतना कठिन बना दूंगा कि सारा ब्रिटिश साम्राज्य उसके नीचे दब जाएगा तो Bhagat Singh और बटुकेश्वर दत्त दिल्ली में नेशनल असेंबली में बम धमाका करने के बाद धुएं के गुबार में बड़ी आसानी से छुपकर भाग सकते थे भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ऐसा नहीं किया


वो वहां खड़े रहे  इंकलाब जिंदाबाद का नारा बुलंद किया आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया ये  समझने के लिए हमें फ्रेंच रेवोलुशन का इतिहास समझना पड़ेगा जिससे Bhagat Singh और उनके साथी बहुत प्रेरणा लेते थे फ्रेंच रेवोलुशन के एक बड़े  revolutionary ने 1893 में फ्रांस की संसद में बम धमाका किया था और उस वक्त कहा था कि 


फ़्रांस को जो  राजशाही है वो इतनी भरी है के उसको सिर्फ धमाकों की आवाज सुनाई देगी फ्रांसीसी क्रांति के 35 साल बाद इसी तरह का इतिहास दोहराया गया  दिल्ली में और इस बार नायक थे  Bhagat Singh बटुकेश्वर दत्त सुखदेव राजगुरु public safety bill और trade disputes bill ये दोनों ऐसे विधायक थे


 जिनके खिलाफ देश में माहौल बहुत गर्म था क्योंकि दोनों ही विधायक श्रमिकों और मजदूर वर्गों के हितों को अनदेखा कर रहे थे 16 ट्रेड यूनियंस के नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे देशभर में आंदोलन का माहौल था

 लेकिन अंग्रेज सरकार का प्रयास था कि किसी भी कीमत पर यह विधायक केंद्रीय असेंबली में पास करवाए जाए नहीं तो अध्यादेश की तौर पर इनको लाया जाए भगत सिंह और उनके साथियों को यह कतई बर्दाश्त नहीं वैसे  नेशनल असेंबली में हुए इस बम कांड का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि


हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के नेता खासकर चंद्रशेखर आजाद यह बिल्कुल नहीं चाहते थे कि Bhagat Singh इस ऑपरेशन में शामिल हो लाइन यह था कि वह तो रूठ जाए आगे की तैयारियां करें लेकिन भगतसिंह नहीं माने वो अड़  गए की


इस बम धमाके के वक्त वह भी मौजूद रहेंगे भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ये धमाका किया फिर नारेबाजी करी अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ फिर वही हुआ जो क्रांतिकारियों को मालूम था बटुकेश्वर Bhagat Singh गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में इन  क्रांतिकारी वीरों के खिलाफ कई मुकदमे भी खुले और


भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई जेल में 1 दिन Bhagat Singh की चाची हरनाम कौर  उनसे मिलने आई  तो जिस बच्चे को उन्होंने प्यार से अपनी गोद में खिलाया था उसकी यह हालत देखकर वह स्वयं को रोक नहीं पाई  और फफक फफक कर रो पड़ी


ये देख कर  भगत सिंह शायद एक पल के लिए विचलित हुए होंगे चाची को रोता देखकर लेकिन अगले ही पल उनका चेहरा तमतमा उठा चेहरा तमतमा उठा और चाची से बोले आप रो सकती हैं आप को रोते देख मुझे भी रोना आ सकता है मै भी  तो आखिर  एक इंसान हूं लेकिन मैं नहीं रो सकता क्योंकि


अगर मैं रो दिया तो यह देश टूट जाएगा उसके सपने टूट जाएंगे आजादी और क्रांति की सारी उम्मीदें खत्म हो जाएगी और भगतसिंह कभी नहीं रोये उस दिन भी नहीं जिस दिन उनको फांसी के तख्ते पर चढ़ाए जा रहा था कैसे गुज़री  Bhagat Singh ने अपनी जिंदगी की आखिरी रात और क्या था उनका रुख  उस समय जब उन्हें  फांसी


के तख्ते की तरफ ले जाया जा रहा था भगत सिंह को फांसी 24 मार्च को दी जाने वाली थी लेकिन फांसी से एक-दो दिन पहले ही देश में जबरदस्त क्रांति का माहौल उत्पन्न हो गया पूरा भारत के लोग खासकर नौजवानों से निकल सडकों पर  आ गए थे


प्रदर्शनों और आंदोलनों का दौर गर्म था जगह जगह जनसभाएं हो रही थी अंग्रेज सरकार घबरा गयी और  सरकार का फैसला लिया गया की  एक दिन पहले ही Bhagat Singh को फांसी दी जाए अधिकारी भगत सिंह को उनकी काई कोठड़ी की तरफ आये वो  राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी पढ़ रहे थे उनके लेखन का  आनंद ले रहे थे


 जेलर  खान बहादुर अकबर अपनी यूनिफॉर्म में थे जेलर और पुलिस के साथ राजगुरु और सुखदेव कभी थे  जेलर Bhagat Singh से बोले सरदार जी आपकी फांसी लगाने का हुक्म आ गया है तैयार हो जाइए भगत सिंह किताब पढ़ने में दुबे  हुए थे जेलर की तरफ  उन्होंने देखा तक नहीं थोड़ा रुककर उल्टा हाथ उठाकर इशारा किया की रुको  और फिर



Bhagat Singh बोले रुको अभी  एक क्रांतिकारी दूसरे से मिल रहा है और भगत सिंह फिर अपने अध्यन में डूब गये और  थोड़ी देर बाद और पढ़ने के बाद खड़े होते है और बोइते हैं  ठीक है अब चलो  लेकिन हमारे हाथों में हथकड़ी न लगाई जाए और न ही हमारे चेहरे कंटोप से ढके होंगे  इसके बाद


 Bhagat Singh अपनी  कोठी को बड़े गौर से देखा चारों तरफ से नजर घुमाई फिर कोठी से बाहर निकले  और राजगुरु और सुखदेव से गले मिले फिर तीनों चल पड़े भगतसिंह बीच में दाएं और बाएं राजगुरु और सुखदेव भगत सिंह की फांसी की खबर जैसे ही देश में फैली पूरे मुल्क में सन्नाटा छा गया था पूरा देश

 शोकाकुल था भगत  सिंह नियमित रूप से डायरी लिखा करते थे

Bhagat Singh को फांसी दी जाने वाली है खबर इतनी जबरदस्त थी कि पूरे देश में हड़कंप मच गया इस वजह से घबराई हुई नर्वस अंग्रेज हुकूमत ने भगत सिंह की फांसी को एक दिन एडवांस कर लिया 1 दिन पहले उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया भगत सिंह की फांसी पर पूरा देश स्तब्ध था


 बड़े-बड़े जननायक बेहद नाराज थे मोहम्मद अली जिन्ना ने तो अपने तर्कों से अदालती जिरह  से साबित करने की पूरी कोशिश करी थी कि Bhagat Singh और उनके साथी हत्यारे नहीं बल्कि राजनीतिकrevolutionary हैं और उनको फांसी की सजा सरासर अन्याय है  नेहरू भी बहुत आहत थे !



भगत सिंहऔर उनके साथियों को फांसी की सजा मिलने से
अपनी अंतिम सांस तक अपने लक्ष्य से  नहीं विचलित होने वाले शहीद ए आजम Bhagat Singh को  देश में आगे जाकर क्या होने वाला उसका भी कुछ पूर्वानुमान था


उनकी आखिरी एंट्री जो 23 मार्च को दर्ज की थी उसमें उन्होंने लिखा था कि फांसी के 15 साल बाद हम भारतवासी अंग्रेजो की गुलामी से मुक्त हो जायेंगे 15 साल कीबजाये  आजादी में 18 साल लग गए देश  1947 में  आजाद हुआलेकिन  उनकी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी


भगत सिंह ने लिखा था कि जिस तरह के लोग आजादी की लड़ाई में जुटे हुए हैं जुड़ रहे हैं उसकी वजह से आजादी के बाद भी देश में लूट और स्वार्थ का इलाज होगा Bhagat Singh डायरी में लिखा था कि क्रांति से हमारा मतलब है अन्याय और शोषण पर टिकी व्यवस्था को बदलना


 पिस्तौल और बम्ब  इंकलाब नहीं लाते बल्कि इंकलाब की तलवार विचारों की धार पर तेज़  होती है
भगत सिंह ने सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ भी अपनी डायरी में काफी बार लिखा था  धार्मिक अंधविश्वास और कट्टरपंथ के वो हमेशा खिलाफ रहे


ये थी  कहानी अमर शहीद महान revolutionary Bhagat Singh की आजादी के वो ऐसे परवाने थे ऐसे मतवाले थे कि वह सिर्फ बम बारूद और बंदूक विश्वास नहीं रखते थे कलम के  भी वो उतने ही बड़े सिपाही थे और अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ ही नहीं उन्होंने हर तरह के शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद की  और देशवासियों को सचेत किया
bhagat singh biography in hindi bhagat singh biography in hindi Reviewed by GREAT INDIA on March 15, 2020 Rating: 5

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